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कबीर दास का दोह/kabir das ka doha
कबीर दास जी की वाणी में अमृत है। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर प्रहार करने का कार्य किया है। कबीर दास जी मुख्य भाषा पंचमेल खिचड़ी है जिसकी वजह से सभी लोग उनके दोहों को आसानी से समझ पाते हैं। जब भी दोहे शब्द सुनाई देता है, तो सबसे ऊपर हमारे जेहन में कबीरदास जी का नाम ही आता है। कबीर दास जी ने सभी धर्मों की बुराइयों और पाखंडों पर व्यंग्य किया है। सभी धर्मों के लोग कबीर दास के मतों को मानते आये हैं और उनके दोहों में जो सीख है, वह हर व्यक्ति को प्रभावित करती है।
किसी भी व्यक्ति का अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद की तरह होता है, जो चाहे छोटा हो अथवा बड़ा हो नाव को डुबो ही देता है, ठीक उसी तरह किसी भी बुरे व्यक्ति की बुराइयां उसे खत्म कर देती हैं।” “पृथ्वी पर तीन अनमोल रत्न जल, अन्न और सुभाषित है, लेकिन जो अज्ञानी पत्थरों के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं।”
1.दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय ...
2.बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय ...
3.बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ...
4.काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ...
5.साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए ...
6.जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग ...
7.माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरी